हमारे प्राचीन संस्कृत शास्त्रों में लिखा है- “कर्षति आकर्षति इति कृष्णः” अर्थात कृष्ण वह हैं , जो आपको आकर्षित करते हैं। अब जिसके नाम में ही कर्षण हो, उससे भला कोई कैसे आकर्षित न हो। जो आकर्षित करता है, वह है कृष्ण। धन, सत्ता, पद आदि किसी को आकर्षित नहीं करते वरन् उनसे प्राप्त सुख ही मनुष्य को आकर्षित करता है।
कृष्ण अर्थात् जो सबको आकर्षित कर सके, शत्रुओं को भी आकर्षित करने की जिसमें क्षमता हो। ऐसा जीवन तुम्हारा भी होना चाहिए। सच पूछो तो तुम श्रीकृष्ण से तनिक भी कम नहीं हो। मैं ईश्वर की कसम खाकर कहता हूँ कि तुम बुद्ध से, महावीर से रत्ती भर भी कम नहीं हो लेकिन स्वयं को कम मान बैठे हो क्योंकि कमनसीब शरीर में अहंता आ गई है। शरीर को अपना और जगत को सच्चा मानना जब से शुरू किया तभी से दुर्भाग्य का आरम्भ हुआ। श्रीकृष्ण धर्म की स्थापना के लिए ही अवतार लेते हैं। ब्रह्मज्ञानियों की रक्षा के लिए नहीं किन्तु जो साधक अभी साधनापथ पर हैं, जो साधुवेश में हैं, उनके संसार की ओर खींचते मन को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए जो अवतार हुआ है उसका नाम है कृष्ण।